हम पैदा होते हैं, मर जाते हैं
उन्मुक्तता की आस लिए
जीते है खुद को तृप्त करने की
एक अनबुझी सी प्यास लिए
कभी आदेश कभी बंधन
कभी जिम्मेदारी कभी मजबूरी
इनके बीच कब होती हैं
दिल की ख्वाहिशें पूरी
कभी घड़ी के कांटे
बन जाते हैं लाचारी
जिंदगी से एक एक पल की
कर रखी है उधारी
तमन्नाओ को खुद ही हम
दिल में दबाने लगते हैं
नकाब ख़ुशी का पहनकर
हंसने हँसाने लगते हैं
जिन लहरों से चाहत समंदर की होती है
उन लहरों को समंदर में उठने ही नही देते हैं
ख्याल तो ख्वाहिशों की देहलीज़ तक पंहुचा देते हैं
पर खुद को हम भीतर घुसने ही नही देते हैं
चाहतों को दिल की कैद में
हम तड़पने देते हैं
अरमान सिसकना चाहें तो
उन्हें भी सिसकने देते हैं
पर पूरा नही कर सकते इन्हें
न ही ऐसा करते हैं
जाने क्यूँ हम जिंदगी
जीने से डरते हैं
- ऋतु