कुछ ऐसी बातें हैं ,
जिनकी तमन्ना का हक ताउम्र नहीं होता.
मेरी तो इतनी ही ख्वाहिश थी
की वो मेरी कब्र पर एक फूल चढ़ा देते
मैं इस कश्मकश से
कब कि निकल चुकी होती
गर एक बार इस ओर वो
अपना हाँथ बढ़ा देते.
कत्ले दिल का इल्ज़ाम,
आखिर कैसे दें उन्हें
एक दफा इस ओर
नज़रे इनायत भी न हुई
दिल ही को शौक था
ख़ुदकुशी का ,
और हमें इस दिल से
शिकायत भी न हुई.
उनके ख्वाब इन आँखों पर
पैर पसारे सोते रहे ,
और वो कब आये कब चले गए
आहट भी न हुई .
धरा भी उदास है,
गगन भी उदास है ,
सूखे हुए दरख्तों को
फिर भी जाने क्या आस है .
रो रो कर सदियों से
नदिया ये सूख चुकी है .
पर्वतों से टकरा-टकरा कर
जीवन से रूठ चुकी है .
संस्करों का पानी
अब यहाँ बहता नहीं है.
यह भू अब बस जंगल है
मानव यहाँ रहता नहीं है.
यहाँ सब चीखते हैं रोते हैं,
जीवन को नित ढोते हैं .
पर आवाज़ उठाते नहीं
बस ज़ख्मो को पिरोते हैं.
यह कौनसी जगह है
जहाँ बस भूख और प्यास है .
जीर्ण कंकालो पर टंगा हुआ
तार-तार हुआ लिबास है.
सूखे हुए दरख्तों को
फिर भी जाने क्या आस है ...........
- ऋतु
Monday, February 14, 2011
उनके इंतज़ार में हम ,
नज़रें बिछाये बैठे रहे .
उनके दर पर अपने,
सर को झुकाए बैठे रहे.
उन्हें छूकर आती हवाओं को ,
पहलू में भरने के लिए ,
हम कई अरसे तक
बाहें फैलाये बैठे रहे.
उन मगरूर रास्तों को हम
आज भी तकते रहते हैं ,
जिन पर उनके कदमो के
निशां बाकी हैं .
उनकी तस्वीर को
दिल से लगा कर रखा है .
तभी तो बिरहा की इस
तड़प में भी जान बाकी है .
- ऋतु
Sunday, February 13, 2011
ख्वाबों को पलकों के
घरोंदों में पलने दो ,
जो जैसा भी है , अच्छा - बुरा ,
फ़िलहाल यूँ ही चलने दो ,
वक़्त आएगा एक दिन ...........
हर एक ख्वाब सच हो जायेगा .
कल एक खूबसूरत सुबह होगी,
ज़रा रात तो ढलने दो .