Wednesday, April 20, 2011

तनहा

सितारों ने आज फिर आसमां सजा दिया
तनहा को और भी तनहा बना दिया 

नज़र आते नही फिर भी मीलों के फासले हैं
यकीन होता नही, कभी साथ हम चले हैं 

शोर इतना है की कुछ सुन नही पातीहूँ मैं
और सन्नाटा ऐसा की बातें कह नही सकती तुम्हें

साथ  होने का भ्रम है और साथ कोई नहीं  है
किस  से  कह  रही  हूँ सारी बात, कोई नही है

दोस्त था गर सच में तो अब  कहाँ गया 
तनहा को और भी तनहा बना दिया .....

यहीं गुम हुआ था शायद, यही खो गया था
जानने की कोशिश भी नहीं की कि क्या हो गया था

अब आलम ये है की दिल ही नही तलाशने का
क्यूंकि ...
जो खो गया है वो अब कभी मिलेगा नहीं
और जो मिलेगा उससे खोने  का एहसास मिटेगा नहीं....

तो फिर सितारों की तरह महफ़िल का हिस्सा बने
क्यूँ हर बार इस ही बात पर किस्सा बने

कि हम साथ होकर भी दूर हैं
और इस बात का भी हमें गुरूर है

                                        - ऋतु

2 comments:

  1. शाम पड़े फिर दिल ने कहा
    बोल ने लब्ज़ खोलने को कहा
    काश आज फिर वो रात आ जाये
    और तन्हाइयो का ये सिलसिला ख़त्म हो जाये

    can't stop myself to write 4 lines on the poem
    superb poem
    and ha meri lines pasand na aaye to hata dena

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  2. .....Very Deep.... its ideal!!!!!! composition!!!

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