Sunday, July 24, 2011

ऐ शाम अभी मत जा 
वक़्त तू कुछ ठहर जा 
अभी मैंने तुझे निहारा ही कहाँ  है
केसरिया रूप तेरा मन में उतारा ही कहाँ  है

आ मेरे पास बैठ मुझसे बात कर 
न भूल पाऊं कभी ऐसी मुलाक़ात कर 
मौसम की ,महक की , मन की गुफ्तगू होने दे 
पर न जवाब माँग मुझसे न कोई सवालात कर

मेरी नाव समंदर में अकेली है तो रहने दे 
आज इसे हवा की दिशा में ही बहने दे
न रोक तू इसे न कोई कोशिश करूँ मै ऐसी 
समंदर की भी मंशा हो कोई तो पूरी कर लेने दे

चल डूब ही जाएँ तूफानों  का नाम लेकर 
या चलें कहीं दूर सपने तमाम लेकर 
या भागें मैदानों में जब तक दम में दम है 
क्यों मसरूफ हैं हम क्यों वक़्त इतना कम है 

आज हम फुर्सत में हैं फुर्सत ही रहे तो अच्छा है 
हर रोज़ हम सब भागते हैं आखिर हमें जल्दी क्या है
क्यों जिंदगी हम दोनों की ही वक़्त की गुलाम है 
यूँ पाबंदियों के बीच जीने में क्या रखा है ..........

                                                    - ऋतु

3 comments:

  1. yaar thought ko shabdo me bdalna to koi tumse shikhe

    another touching poem

    ReplyDelete
  2. ...may you fly in the sky...without any restriction!!!!,,,,,,,,,

    ReplyDelete
  3. nice one...bade acche se vo suhani sham aur tere thoughts ko milaya

    ReplyDelete