Wednesday, February 16, 2011

जाने क्या आस है ........

धरा भी उदास है,
गगन भी उदास है ,
सूखे हुए दरख्तों को
फिर भी जाने क्या आस है .

रो रो कर सदियों से
नदिया ये सूख चुकी है .
पर्वतों से टकरा-टकरा कर
जीवन से रूठ चुकी है .

संस्करों का पानी
अब यहाँ बहता नहीं है.
यह भू अब बस जंगल है
मानव यहाँ रहता नहीं है.

यहाँ सब चीखते हैं रोते हैं,
जीवन को नित ढोते हैं .
पर आवाज़ उठाते नहीं
बस ज़ख्मो को पिरोते हैं.

यह कौनसी जगह है
जहाँ बस भूख और प्यास है .
जीर्ण कंकालो पर टंगा हुआ
तार-तार हुआ लिबास है.


सूखे हुए दरख्तों को
फिर भी जाने क्या आस है ...........

                              - ऋतु

2 comments:

  1. shuke hue darkto ko

    is baat ki aas hai

    ki muskuraate rhe hmesha

    kyu ki tu jo unke saath hai


    Take Care

    ReplyDelete
  2. very nice yaar
    speically this lines
    यहाँ सब चीखते हैं रोते हैं,
    जीवन को नित ढोते हैं .
    पर आवाज़ उठाते नहीं
    बस ज़ख्मो को पिरोते हैं.

    keep blogging...

    ReplyDelete