धरा भी उदास है,
गगन भी उदास है ,
सूखे हुए दरख्तों को
फिर भी जाने क्या आस है .
रो रो कर सदियों से
नदिया ये सूख चुकी है .
पर्वतों से टकरा-टकरा कर
जीवन से रूठ चुकी है .
संस्करों का पानी
अब यहाँ बहता नहीं है.
यह भू अब बस जंगल है
मानव यहाँ रहता नहीं है.
यहाँ सब चीखते हैं रोते हैं,
जीवन को नित ढोते हैं .
पर आवाज़ उठाते नहीं
बस ज़ख्मो को पिरोते हैं.
यह कौनसी जगह है
जहाँ बस भूख और प्यास है .
जीर्ण कंकालो पर टंगा हुआ
तार-तार हुआ लिबास है.
सूखे हुए दरख्तों को
फिर भी जाने क्या आस है ...........
- ऋतु
गगन भी उदास है ,
सूखे हुए दरख्तों को
फिर भी जाने क्या आस है .
रो रो कर सदियों से
नदिया ये सूख चुकी है .
पर्वतों से टकरा-टकरा कर
जीवन से रूठ चुकी है .
संस्करों का पानी
अब यहाँ बहता नहीं है.
यह भू अब बस जंगल है
मानव यहाँ रहता नहीं है.
यहाँ सब चीखते हैं रोते हैं,
जीवन को नित ढोते हैं .
पर आवाज़ उठाते नहीं
बस ज़ख्मो को पिरोते हैं.
यह कौनसी जगह है
जहाँ बस भूख और प्यास है .
जीर्ण कंकालो पर टंगा हुआ
तार-तार हुआ लिबास है.
सूखे हुए दरख्तों को
फिर भी जाने क्या आस है ...........
- ऋतु
shuke hue darkto ko
ReplyDeleteis baat ki aas hai
ki muskuraate rhe hmesha
kyu ki tu jo unke saath hai
Take Care
very nice yaar
ReplyDeletespeically this lines
यहाँ सब चीखते हैं रोते हैं,
जीवन को नित ढोते हैं .
पर आवाज़ उठाते नहीं
बस ज़ख्मो को पिरोते हैं.
keep blogging...