कुछ ऐसी बातें हैं ,
जिनकी तमन्ना का हक ताउम्र नहीं होता.
मेरी तो इतनी ही ख्वाहिश थी
की वो मेरी कब्र पर एक फूल चढ़ा देते
मैं इस कश्मकश से
कब कि निकल चुकी होती
गर एक बार इस ओर वो
अपना हाँथ बढ़ा देते.
कत्ले दिल का इल्ज़ाम,
आखिर कैसे दें उन्हें
एक दफा इस ओर
नज़रे इनायत भी न हुई
दिल ही को शौक था
ख़ुदकुशी का ,
और हमें इस दिल से
शिकायत भी न हुई.
उनके ख्वाब इन आँखों पर
पैर पसारे सोते रहे ,
और वो कब आये कब चले गए
आहट भी न हुई .
- ऋतु
जिनकी तमन्ना का हक ताउम्र नहीं होता.
मेरी तो इतनी ही ख्वाहिश थी
की वो मेरी कब्र पर एक फूल चढ़ा देते
मैं इस कश्मकश से
कब कि निकल चुकी होती
गर एक बार इस ओर वो
अपना हाँथ बढ़ा देते.
कत्ले दिल का इल्ज़ाम,
आखिर कैसे दें उन्हें
एक दफा इस ओर
नज़रे इनायत भी न हुई
दिल ही को शौक था
ख़ुदकुशी का ,
और हमें इस दिल से
शिकायत भी न हुई.
उनके ख्वाब इन आँखों पर
पैर पसारे सोते रहे ,
और वो कब आये कब चले गए
आहट भी न हुई .
- ऋतु
itani si khwahish hain
ReplyDeletenice poem....