Monday, February 14, 2011

उनके इंतज़ार में हम ,
नज़रें बिछाये बैठे रहे .
उनके दर पर अपने,
सर को झुकाए बैठे रहे.
उन्हें छूकर आती हवाओं को ,
पहलू में भरने के लिए ,
हम कई अरसे तक 
बाहें फैलाये बैठे रहे.

उन मगरूर रास्तों को हम
आज भी तकते रहते हैं ,
जिन पर उनके कदमो के
निशां बाकी हैं .
उनकी तस्वीर को
दिल से लगा कर रखा है .
तभी तो बिरहा की इस
तड़प में भी जान बाकी है .

               - ऋतु

2 comments:

  1. n pucho is dil ki hasrat kya hai

    ye jaanta kha hai ki mhobbaat kya

    yeto bas hui Tadpana janta hai

    ise kya malume INTJAAR ki hakkikatt kya hai !



    " U having grt Neha thought ever i listen, viewed, read "

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  2. उन मगरूर रास्तों को हम
    आज भी तकते रहते हैं ,
    जिन पर उनके कदमो के
    निशां बाकी हैं .
    उनकी तस्वीर को
    दिल से लगा कर रखा है .
    तभी तो बिरहा की इस
    तड़प में भी जान बाकी है .

    bahut khoob panktiya hain ye

    sach main dil se likhi gai hain
    ek dum sundar...
    keep it up and follow my blog for updates of my blog
    http://iamhereonlyforu.blogspot.com/

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